सामान्यतः लोग जब किसी जगह पहली
बार घुमने जाते हैं तो वो अपने रिश्तेदारों या जानकार मित्रों से उस जगह घुमने के
लिए सलाह मांगते हैं, लेकिन मैंने ऐसा नही किया या यूं कहूँ कि मुझे इसकी जरूरत ही
नही पड़ी और वो इसलिए कि मेरे जिन मित्रों को भी मेरी मणिपुर यात्रा की जानकारी
मिली, उन्होंने मुझे बिना पूछे ही बहुत सारी जानकारी व सलाह दे डाली और उनके
सुझावों को मैंने भी अपने पास सहेज लिया था |
आशा दीदी के घर से विदा
लेकर हम चार लोग मोइरांग के लिए निकल पड़े, इम्फाल से मोइरांग कि दूरी 45 किमी लगभग
है, यानि डेढ़ घंटा आराम से, मै भास्कर दा, जोनाथन जी व उनके मित्र | जोनाथन जी हमे
घुमाने के लिए अपने मित्र के साथ उनकी कार लेके आये थे, इम्फाल कि गलियों से निकल
कर जब हम मुख्य मार्ग पर पहुंचे तो हम बीजेपी कि चुनावी रैली में जाकर फंस गए,
हांलांकि हमको बाहर निकलने के लिए ज्यादा परिश्रम नही करना पड़ा लेकिन मुझे इस रैली
से यहाँ के विधान सभा चुनावों में बीजेपी की राजनैतिक दावेदारी का आंकलन करने का
मौका मिल गया, वैसे मै पहले भी यहाँ के राजनैतिक समीकरण पर यहाँ के लोगों के साथ चर्चा
कर चुका था और इस बार के चुनावों में बीजेपी को लोगों का समर्थन मिलता हुआ लग रहा था,
लेकिन कुछ लोग नाराज भी थे और उनका कहना था कि बीजेपी पूर्ण बहुमत से सरकार बना
सकती थी अगर वो कांग्रेसी नेताओं को चुनाव के ठीक पहले पार्टी में शामिल न करते,
वैसे भारत का प्रत्येक जन राजनीतिक विश्लेषक है और प्रत्येक राज्य की राजनीति में
उसका अपना ही आंकलन रहता है, लेकिन पूर्वोत्तर कि राजनीति एकदम अलग है; खासकर
अरुणाचल और मणिपुर की, यहाँ का चलन रहा है की केंद्र में जिसकी सरकार होगी राज्य
में भी वही राज करेगा और यकीन ना हो तो दोनों राज्यों की पिछले एक साल की राजनीतिक
घटनाक्रमों को याद कर लीजिये, खैर मै अपनी यात्रा पर लौटता हूँ.....
राजनीतिक भीड़ से निकलने के
बाद हमारी गाड़ी तेजी से मोइरांग की ओर बढ़ने लगी, लगभग 17 किमी के बाद हमने जापानीज
सैनिकों की याद में बनाये गए वार मेमोरियल को पार किया, जिसे Japanese war
veterans ने मुख्य इम्फाल से दक्षिण इम्फाल में 17 किमी
आगे मोइरांग के रास्ते में बनाया था जिसे नाम दिया गया "Indian
Peace Memorial". असल मायनों में ये भारत के
सच्चे मित्र थे, आज के प्रसाशनिक दृष्टि से यह स्थान मणिपुर के बिष्णुपुर जिले के
नाम्बोल में आता है | आज भी यहाँ जापानीज अपने पुरखों को श्रधांजलि देने आते हैं, हमारे
पास आज समय कम था इसलिए हम सीधे मोइरांग के लिए बढ़ते रहे वरना मै इस जगह जरूर जाता
| लेकिन इस स्मारक से गुजरते हुए मुझे विजय झा जी का मणिपुर घुमने के सन्दर्भ में दिये
गए सुझाव कि याद आ गयी | उनका कहना था कि अगर मणिपुर जा रहे हो तो दो जगह जरूर हो
आना, 1- मोरेह, जोकि भारत और बर्मा दोनों देशों का बॉर्डर है और दूसरा INA म्यूजियम
यानि Indian National Army (INA) Museum जोकि मोइरांग
जिले में ही है और आज संयोग से मैं मोइरांग कि यात्रा पर ही निकला था | यह
संग्राहलय भारत कि आजादी में अपने योगदान व संघर्ष को बयान करता है, इसमें सुभाष
चन्द्र बोस द्वारा बनायीं गयी इंडियन नेशनल आर्मी यानि आज़ाद हिन्द फौज के सन्दर्भ
में लिखे पत्रों, चित्रों, INA सेनानियों के रैंकों के बैज और इस
आंदोलन से जुड़े कुछ लेखों को संजोया गया है |
भारत कि आज़ादी के इतिहास में
INA, जापानीज सैनिक व मोइरांग (मणिपुर) का अपना अलग ही व महत्वपूर्ण स्थान है,
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के उदेश्य से INA
ने 2700 किमी दूर सिंगापुर से भारत के कोहिमा व इम्फाल जिले के लिए कूच किया और
अप्रैल 1944 में जापानीज सैनिकों कि मदद से उन्होंने भारत में प्रवेश किया |
जापानीज सैनिकों कि मदद से INA से तब के असम के कोहिमा जिले (आज का नागालैंड
राज्य) व मणिपुर का 2/3 हिस्सा अंग्रेजों से मुक्त करवा दिया और कर्नल एस.ए.मलिक
के अधीन मोइरांग को अंग्रेजों से मुक्त क्षेत्र का Provisional Head Quarters बना दिया गया, कर्नल मलिक ने 14 अप्रैल 1944 को मोइरांग में पहली बार देश का
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को फहराया | हांलांकि INA के लगभग 26 हजार सैनिकों और लगभग
40 हजार जापानीज सैनिकों कि शहादत अंग्रेजों से कोहिमा और इम्फाल को बहुत समय तक
मुक्त न रख पाई लेकिन लगभग 60 हजार ब्रिटिश सैनिकों को इन्होंने मौत के घाट उतार
दिया था जोकि ब्रिटिश साम्राज्य के लिए गहरे जख्म से कम न था |
मोइरांग में और कहाँ घुमने जाऊं इस
सन्दर्भ में दूसरा सुझाव मुझे पुष्पारानी जी ने इम्फाल में ही दिया जब उनको पता
चला कि उनके घर से भोजन के बाद में सीधे मोइरांग जाने वाला हूँ तो उन्होंने मुझे लोकटक
लेक और केइबुल लम्जो नेशनल पार्क Keibul
Lamjao National Park जरूर हो आने को कहा, शायद इसलिए कि उन्हें मेरी फोटोग्राफी से मेरे प्रकृति प्रेमी
होने का भान हो गया था और यही प्रकृति प्रेम मुझे बार-बार दिल्ली जैसी शहरी जिंदगी
से मुह मुडवाती रही है |
Loktak lake and Keibul Lamjao National Park इतिहास से इतर जिन लोगों को प्राकृतिक सौन्दर्य में रूचि
है उनके लिए मोइरांग में घुमने के लिए लोकटक झील है, Loktak नाम दो शब्दों के जोड़
से बना है Lok = "stream" and tak = "the end" यानि जहाँ पानी कि धारा रुक जाती है, पूर्वोत्तर भारत में
ताजे पानी की ये सबसे बड़ी झील है और इस झील को खास बनाते हैं इसके Phumdis यानि तैरते हुए द्वीप | भारत के मणिपुर में विश्व का एकमात्र तैरता राष्ट्रीय पार्क
“केइबुल लम्जो नेशनल पार्क” इसी लोकटक लेक का एक हिस्सा है | जोकि मोइरांग
का सबसे मुख्य आकर्षण है, इस झील से मोइरांग के लोगों कि आजीविका भी जुडी है |
लेकिन इस बार न तो मेरे मन में और न ही मेरे
भाग्य में भारत कि आजादी से जुड़े इन ऐतिहासिक स्थलों व प्राकृतिक स्थलों के भ्रमण
का योग बन पाया, वैसे मैं खुद को भू-पर्यटक से ज्यादा सांस्कृतिक व सामाजिक पर्यटक
(यात्री) मानता हूँ और इस बार मैंने मणिपुर की इस छोटी सी यात्रा को यहाँ के लोगों
से मिलने जुलने उनको समझने के लिए रखी थी, इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों से
यहाँ मिलना चाहता था और मोइरांग जाने का भास्कर दा का भी उद्देश्य यही था जो मेरे
लिए एकदम अनुकूल था |
बातों–बातों में 45 किमी का
सफ़र कैंसे पूरा हो गया पता ही न चला और हम भारत कि आज़ादी, आज़ाद हिन्द फ़ौज और नेता
जी व भारत के सच्चे मित्र जापानीज़ सेना से जुड़े ऐतिहासिक स्थान मोइरांग में पहुँच चुके थे, सबसे पहले हम जिनके घर में गए वहां हमे यहाँ प्रमुखता से खाए जाने वाले
पकोड़े व काले चावल से बने कुछ स्वादिष्ट व्यंजन - छोटी गोल रोटी व भुजिया परोसी
गयी, मन में थोडा शंका थी कि कहीं ये मांसाहारी व्यंजन न हो लेकिन जल्दी ही मुझे
उसके शुद्ध शाकाहारी होने कि जानकारी दी गयी, पेट भरा होने के बावजूद भी काले
चावलों से बने पकवान की हलकी मिठास व उसका कुरकुरापन्न जुबान से ऐसे चिपक गये थे कि
हाथ बार–बार प्लेट की और बढ़ जाते, मैंने पहली बार काले चावलों से बने किसी व्यंजन
को खाया था और तब से पहले मुझे काले चावलों का ज्ञान भी न था, ये काले चावल देश के
एक आध ही राज्यों में उगाया जाता है और मणिपुर उसमे प्रमुख है | मैंने काले चावलों
को देखने कि इच्छा जाहिर की लेकिन मुझे उनके दर्शन नही हो पाये | इस घर से निकलने
के बाद मोइरांग में हमारा लगभग 8-10 घरों जाना हुआ, हम एक घर से निकलकर दूसरे घर
में घुस जाते और बातचीत में व्यस्त हो जाते, किसी भी घर में जाकर ये महसूस नही हुआ
की मैं किसी ऐसे घर में हूँ जहाँ की भाषा, खान-पान, रीति-रिवाज, भेष-भूषा मेरे से
एकदम अलग है, जिस भी घर में हम गए वहां के लोग बड़ी गर्मजोशी से हमारा स्वागत कर
रहे थे |
मोइरांग में मेरा एक युवा
साथी से परिचय हुआ जो बच्चों को tution पढ़ाते हैं और मणिपुर को शिक्षा, विकास की बुनियाद
से अशांति से शांति की और ले जाना चाहता है, उनके साथ कुछ और युवा जुड़े हैं जो इस
कार्य में उसका साथ देते हैं, मैंने बातों–बातों में उनसे जानना चाहा की वो दिन भर
क्या करते हैं तो पता चला कि वो tution पढ़ाने के आलावा यहाँ के बेरोजगार युवाओं को
इन्टनेट के माध्यम से काम ढूंड कर उनको उस काम में व्यस्त रखते हैं, ऐसे ही युवाओं
के कारण मणिपुर कि फिजायें बदल रही हैं, जहाँ पहले सूर्यास्त के साथ ही सन्नाटा छा
जाता था वहां आज हम बाहर से आये लोग आराम से घूम रहे थे |
एक तो सर्दियों का समय ऊपर से पूर्वोत्तर क्षेत्र जहाँ रात जल्दी हो जाती है, रात के सात बज चुके थे और अभी हम मोइरांग में ही थे, अँधेरा काफी हो चुका था और
हमारा लोगों से मिलने का सिलसिला जारी था,जोनाथन जी की चिंता अँधेरे के साथ ही बढ़ने
लगी थी और उनके साथ ही मेरे मन में भी एक अजीब सा डर घर कर रहा था, जोनाथन जी को हमे वापस इम्फाल 45 किमी छोड के
17 किमी नाम्बोल वापस भी आना था उनका चिंता करना भी स्वाभाविक था, मैंने भी भास्कर
दा से आग्रह कर जल्दी मोइरांग से निकलने कि बात कही और लोगों से मिलते मिलाते हम
लगभग रात के 8 बजे मोइरांग से इम्फाल के लिए निकल पड़े, जोनाथन जी ने अपनी चिंता कि
असल वजह हमसे साझा की उनका कहना था की यहाँ का एक दौर ऐंसा रहा है जब आप शाम के
बाद अगर कहीं जाते हो तो आपको अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता था, या तो आप यहाँ के
उग्रवादियों के हाथों मारे जाते या फिर यहाँ कि स्पेशल कमांडो फ़ोर्स के हाथों,
जिसके चंगुल में भी आप फंसे, पिसना आपको ही होता, हांलांकि अब हालात उतने बुरे नही
थे लेकिन कुछ समय बाद मणिपुर में चुनाव होने वाले थे और चुनावों का माहौल तैयार हो
रहा था और ऐसे में यहाँ उग्रवादी घटनाएँ होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और कोई भी
आम नागरिक इस तरह कि तकलीफों से दो-चार नही होना चाहता, इसलिए वो समय से वापस चलने
के लिए कह रहे थे | चुनावो के मद्देनज़र बिसेश्वर दा ने भी हमे ये बात कही थी कि
आजकल ज्यादा देर तक बाहर घूमना ठीक नही होगा |
रात के नौ बजे हम इम्फाल में दाखिल हुए और घर जाने के बजाय हम भास्कर दा के एक मित्र बिजित जी से मिलने उनके घर चले गए, जोनाथन जी को हमने उनके घर के लिए विदा किया और अब बिजित जी कि जिम्मेदारी पर उनके घर पहुंचे, जिम्मेदारी इसलिए की उन्हें ही आगे हमे हमारे ठिकाने पर पहुचाने कि जिम्मेदारी थी, उनके घर पहुँच कर भी हमे काले चावल से बना एक स्नैक्स खाने को दिया गया जो दिखने में मैदे से बनी मटर जैंसे थी लेकिन स्वाद वही क्रिस्पी व हल्की मिठास से भरी हुयी....यहाँ भी मैंने काले चावलों को देखने कि इच्छा जाहिर कि लेकिन मुझे काले चावल नही मिले, बिजित जी से बात करते हुए पता चला कि वो यहाँ के बिजली विभाग में अधिकारी हैं और बाहर से पढाई के बाद यहाँ जॉब करते हैं, उनसे पता चला कि सरकार ने कम से कम बिजली के क्षेत्र में तो अच्छा काम किया है और इसका मैंने 5 दिनों में खुद भी अनुभव किया |
रात के 10 बज चुके थे और बिसेश्वर दा का भी फ़ोन आना लाजमी था हम भी अब वापस घर लौटने को तैयार थे,बिजित जी के जीजा जी जोकि स्पेशल कमांडो फ़ोर्स में थे वो भी हमे घर छोड़ने साथ आये ताकि बिजित जी को रास्ते में लौटते वक़्त किसी मुसीबत का सामना न करना पड़े, भगवान कि दुआ से हमे पूरे रास्ते कहीं भी किसी प्रकार की मुसीबत का सामना नही करना पड़ा लेकिन जब आप स्थानीय लोगों के मुह से मुसीबत शब्दों को सुनते हैं या उनके द्वारा खुद इतनी सावधानी बरती जाये तो आपके मन में डर का पैदा होना लाजमी है |
रात के लगभग 10:30 बजे घर
पहुँचने के साथ ही हमारा तीसरे दिन का सफ़र पूरा हुआ और जब में घर में पहुंचा तो एक
स्थानीय नव मित्र को जब पता चला कि मैं मोइरांग गया था तो वो मुझसे पूछा बैठा कि
क्या अपने मोइरांग कि लड़कियों को देखा ? मैंने कहा नही तो वो बोला कि पूरे मणिपुर
में मोइरांग कि लड़कियां सबसे खुबसूरत होती हैं या मानी जाती हैं और ये बात मुझे
वैसे पहले भी किसी ने बताई थी |
रात में भी के लोग कल होनी
वाली बिसेश्वर दा कि शादी कि तैयारियों में व्यस्त थे कोई दाल कि सफाई करके उसे
भिगोने रख रहा था तो कोई कुछ और मुझे महेश ने अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होकर उसके
साथ दुल्हन के घर जाने कि बात कही और हम तीसरे दिन को विराम दे कर अपने कमरे में
सोने चले गए ..............................|
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