थौबल से वापस इम्फाल लौटने
की घडी आ चुकी थी, जिस तरह हम थौबल आये थे उसी तरह वापस इम्फाल के लिए निकल पड़े,
कुछ किमी की दूरी तय करने के बाद हमारे पास दो विकल्प थे एक तो जिस रास्ते हम आये
थे उसी रास्ते वापस इरिलबुंग होते हुए इम्फाल जाए या फिर उस राष्ट्रीय राजमार्ग पे
चलते रहे जो इम्फाल को मोरे (बर्मा सीमा) से जोड़ती है, हमने नया रास्ता चुना ताकि
इम्फाल के दूसरे भाग को भी देखा जा सके भले चलते– चलते ही सही, अबुंग कि लाइव
कमंट्री फिर शुरू हो गयी थी, वो बताता जा रहा था और मैं सुनता जा रहा था, रास्ते
में हमे कुछ बस्तियां नज़र आयी, अबुंग ने कहा ये सारी बस्तियां अवैध हैं और
राजनीतिक संरक्षण के चलते इनका कोई कुछ नही बिगाड़ सकता, ये आउटर इम्फाल का वह भाग
है जहाँ सबसे ज्यादा बंद व दंगे होते हैं, कुछ और किमी कि दूरी तय करने के बाद
हमने आउटर इम्फाल का ही एक छोटा सा टाउन क्रॉस किया अबुंग ने उसके बारे में बताते
हुए कहा कि यह मणिपुर का रहस्यमयी इलाका है जहाँ चोरी का सामान पता नही कैंसे समा
जाता है, यहाँ पुलिस भी आने में कतराती है और आपकी गाड़ी चंद मिनटों में यहाँ से
गायब हो सकती है | ये सारी बातें अबुंग
चलते-चलते बताता जा रहा था और साथ ही वो मुझे उन रास्तों को भी इशारों से बता रहा
था जिनसे हम कम से कम समय में इरिलबुंग पहुँच सकते थे |
इम्फाल में मुझे और भास्कर
दा को दो अलग-अलग घरों में भोजन के लिए जाना था, भास्कर दा आशा रानी दीदी के घर
भोजन के लिए जाने वाले थे लेकिन भास्कर दा उनके घर का रास्ता नही जानते थे और हम
चारों में स्थानीय रास्तों कि जानकारी अबुंग से ज्यादा किसे होगी ये बताने वाली
बात नही है इसलिए अबुंग मुझे साथ लेकर सबसे पहले भास्कर दा को आशा दीदी के घर तक
छोड़ने गया, वैसे भास्कर दा इतनी जल्दी में थे कि वो हम से पहले निकल गए थे लेकिन
जा पहुंचे कहीं ओर, मैं और अबुंग रास्ते में उनका इंतज़ार करते रहे, उनका फ़ोन लगाते
रहे लेकिन नेटवर्क प्रोब्लम के कारण बात नही हो पाई तो हम सीधे आशा दीदी के घर जा
पहुंचे, थोड़ी देर बाद जैसे तैसे भास्कर दा भी वहां आ पहुंचे, आशा दीदी भी मेरे से
भोजन करने की जिद करने लगी तो मैंने आकर खाने को कहा, फिर अबुंग मुझे लेकर निकल
पड़ा भाभी के माइके वाले घर में जहाँ उनकी छोटी बहन हमारा इंतज़ार कर रही थी, जो
अपने माँ पिताजी के साथ इम्फाल में रहती हैं, वैसे तो वो दिल्ली में ही रहती थी
लेकिन पिछले महीने ही दिल्ली से वापस मणिपुर में आकर अपना काम कर रही हैं, वो पेशे
से अर्केटेक्ट हैं | भाभी शादी के बाद से भैया के साथ सहारनपुर में रहती हैं और दोनों दांतों
के डॉ हैं | अपनी डाक्टरी कि पढाई के दौरान ही दोनों का प्यार परवान चढ़ा और एक
दूसरे के साथ विवाह-सूत्र में बंध गए, उनके दो बच्चे हैं | खैर 12
बजे के बदले हम डेढ़ बजे घर पे पहुँच ही गए, भूख भी जोरों कि लगी थी, भाभी कि बहन
से में आज पहली बार मिल रहा था, लेकिन हम फेसबुक और फ़ोन से एक दूसरे से जुड़े रहे
हैं, दिल्ली में कई बार मिलने की सोची पर मिलना नही हो पाया था, मेरे उनके घर में
पहुँचते ही भाभी के मम्मी-पापा मेरे से मिलने आ गये, मम्मी से मेरी कम ही बात हो
पाई लेकिन पापा से काफी बात हुई, इम्फाल में हम जिनके घर में रुके थे वो उनसे
भलीभांति परिचित थे, मेरे से हिंदी में बात हो रही थी और अबुंग से मणिपुरी में, चाय
के लिए हमने मना कर दिया था तो पहुँचने के कुछ देर बाद ही हमारे लिए भोजन परोसा जाने
लगा, दाल, चावल, आलू गोभी कि सब्जी, बीन्स कि सब्जी, चिकेन और मछली कढ़ी और इरोम्बा
से खाने की मेज पट चुकी थी, केवल रोटी कि कमी थी वरना पूरा खाना लगभग उत्तर भारतीय
ही था बस इरोम्बा को छोड़ दें तो..
इरोम्बा मणिपुर का प्रमुख,
प्रसिद्ध व सबसे पसंदीदा व्यंजन है, किसी भी मणिपुरी के सामने इसका जिक्र करो तो स्वाभाविक
ही उसके मुह में पानी आ जायेगा, लोगों से सुनी बातों के आधार पर इस व्यंजन से मेरा
परिचय तो था लेकिन आज इसे चखने का पहला मौका भी था | चूँकि मै उत्तर भारत से हूँ
तो हमारे लिए इसे बनाते वक्त इस बात का बहुत ध्यान रखा गया था और यही वजह थी कि
इरोम्बा की सबसे मुख्य सामग्री नगारी यानि किण्वित मछली (fermented fish) को इससे
दूर रखा गया था और हमारे लिए भाभी कि मम्मी ने खुद शुद्ध शाकाहारी इरोम्बा बनाया
गया था, भाभी कि बहन को अंदेशा था कि मुझे नगारी कि खुशबू अच्छी नही लगेगी इसलिए
उन्होंने इसे डालने को मना कर दिया था, मैंने एक कटोरी में थोडा सा इरोम्बा लिया
और खाने के साथ थोडा-थोडा करके खाने लगा, स्वाभाविक था कि ये मेरे स्वादअनुसार तो
नही था लेकिन ये इतना भी बुरा नही था कि मैं इसे खा न सकूँ, सबकी अपनी–अपनी खान-पान
कि शैली होती है और हमे उसको पूरा सम्मान देना चाहिए, इधर मैं एक कटोरी इरोम्बा से
ही छक गया था उधर अबुंग इरोम्बा को तबियत से पैले जा रहा था, मै भी खुश था कि उसने
मेरे बदले का इरोम्बा भी चट कर दिया था, वरना उसे फेंकना पड़ता क्योंकि मणिपुरी लोग
खाने को एक पहर से दूसरे पहर के लिए बचाके नही रखते और खाना फेंकना मुझे बिलकुल भी
पसंद नही है |
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"Eromba" A Manipuri Dish, Photo Source-Google |
इरोम्बा कि सामग्री
व बनाए जाने कि विधि – असली इरोम्बा बनाने के लिए थोडा उबले आलू, उबली
हुयी हरी सब्जियां जैसे भिन्डी, बीन्स, सेम आदि के साथ नगारी यानि किण्वित मछली (fermented
fish) और सुखी लाल मिर्ची कि जरूरत होती है, इन सबको एक बर्तन में एक साथ मसलकर
मिलाया जाता है जिससे उसकी चटनी बन जाती है और यदि नकली यानि शाकाहारी इरोम्बा
बनाना है तो इससे केवल मछली हटा दो तो शाकाहारी इरोम्बा बन जायेगा | इरोम्बा में
नगारी का इस्तेमाल महत्वपूर्ण होता है और इसको बनाए जाने कि भी अपनी एक अलग ही
विधि है, नगारी मणिपुर व पूर्वोत्तर राज्यों का एक महत्वपूर्ण भोज्य उत्पाद है जोकि
मछली को धुप में बिना नमक के सुखाया जाता है, जिससे मछली को घर में लम्बे समय तक
रखा जा सकता है, इसको बनाये जाने कि विधि थोड़ी जटिल और स्वाद अनुसार पूर्वोत्तर
राज्यों में अलग-अलग है, नगारी 10 से 15 दिन में तैयार होती इसलिए अभी में इसकी
विधि में नही जाना चाहता............................|
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Fermented Fish, (Photo Source - Google) |
खाना खाके हमारा पेट भर चुका
था और आलस हम पर हावी हो रहा था, लेकिन आज ही हमारा मोइरांग जाने का भी प्रोग्राम
बन गया था, मोइरांग जाने कि खबर सुनकर भाभी कि बहन ने मुझे वहां लोकटक लेक घूम आने
को कहा मैंने भी कहा ठीक है, खाना खाने के बाद आधे घंटे और बैठने के बाद मैंने और
अबुंग ने वहां से विदा ली, जाते-जाते भाभी की बहन ने हमे आंवला और जैतून के ताज़ा
अचार के कुछ पैकेट थमा दिये जोकि कुछ दिन पहले ही बनाये गये थे और खाने के लिए
एकदम तैयार थे | वहाँ से निकलकर हम सीधे आशा
दीदी के घर जा पहुंचे जहाँ भास्कर दा हमारा इंतज़ार कर रहे थे, वहां उनके एक मित्र कार
लेकर आने वाले थे जो हमे मोइरांग लेके जाने वाले थे, आशा दीदी के घर पहुँचने के
कुछ ही देर बाद भास्कर दा के मित्र भी आ गए थे, उनसे मेरी मुलाकत मणिपुर में पहले
ही दिन एअरपोर्ट पर हो चुकी थी इसलिए मुझे उनसे परिचय करने कि अलग से कोई जरूरत
नही पड़ी क्योंकि भास्कर दा ने उनको मेरे बारे में गुवाहटी एअरपोर्ट पर ही बता दिया
था और मणिपुर एअरपोर्ट में जब हम मिले तो वो पहले ही जिद कर चुके थे कि वो मुझे
इम्फाल और मोरे घुमाने ले जायेंगे लेकिन हमने समय कम होने कि वजह से उनको मना कर
दिया था लेकिन वो फिर भी न माने और आज हमे मोइरांग लेके जा रहे थे, वैसे अंधे को
क्या चाहिए था.......... समय कम था इसलिए
हम इम्फाल से सीधे मोइरांग के निकल पड़े ........................| शेष अगली पोस्ट
में ............
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