नवम्बर में नौकरी छोड़ने के बाद से मै लगातार घूम ही रहा हूँ, कुछ अपनी मर्ज़ी से कुछ वक़्त कि मर्ज़ी से, एक गज़ल कि ये पंक्तियाँ “अपनी मर्ज़ी के कहाँ अपने सफ़र के हम हैं, रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं”... मुझे खूब भाती हैं और इन्हें मै खुद पर सटीक भी मानता हूँ | पिछले तीन महीने मैंने जितनी भी यात्रायें कि वो कोई बहुत पहले से तय नही कि गयी थी, क्योंकि नौकरी छोड़ने कि कोई योजना नही थी; बस योग था अतः सारी यात्रायें संयोगवश, सह यात्री व समय पर आधारित थी इसलिए यात्रा काफी रोचक रही, ऊपर से प्रधानमन्त्री द्वारा दिया गया भारतीय इतिहास में कभी न भूलने वाला तोफा भी मेरी यात्रा शुरू करने से ठीक दो दिन पहले 8 नवम्बर 2016 रात 8 बजे को ही दिया गया था | खैर तीन मास बाद दिल्ली में अब जाके गाड़ी थमी तो यात्रा लेखन और चित्र संपादन में जुटा हूँ, दो–दो, तीन-तीन दिन घर से बाहर निकलना नही हो रहा, दिन से कब रात हो जाती है पता ही नही चलता, सुबह जब लोग उठके अपना गला खंकारने लगते हैं तो मै इसे अपने सोने का अलार्म समझता हूँ | इस तीन मास कि यात्रा में मेरे लिए सबसे रोचक पूर्वोत्तर कि यात्रा रही, आखिर तीन साल के बाद एक बार फिर पूर्वोत्तर जाने का संयोग बना और इसी मास फरवरी में मेरा मणिपुर और असम का प्रवास हुआ | असम तो मै कई बार गया हूँ लेकिन मणिपुर पहली बार जाना हुआ | लगभग दो सप्ताह कि पूर्वोत्तर यात्रा के दौरान मणिपुर व असम दोनों राज्यों के पारंपरिक विवाह में मुझे शामिल होने का सौभाग्य मिला, सच मानिये यहाँ के पारंपरिक विवाह में शामिल होने कि अनभूति अद्भुत है, आपको भी जल्दी ही कुछ चित्रों व शब्दों के माध्यम से पूर्वोत्तर कि इन दो पारंपरिक विवाह पद्धति से परिचय करवाऊंगा, साथ ही यात्रा के दौरान अन्य अनुभवों को भी आपके साथ साझा करूँगा | यात्रा लेखन व चित्र संपादन का कार्य जारी है ......तब तक के लिए धन्यवाद |
पिछले कई वर्षो से लेखन कार्य बंद था इसलिए ब्लॉग में केवल मेरे कुछ यात्रा चित्र ही होंगे, अब धीरे –धीरे मै अपने यात्रा संस्मरणों को लिखने कि कोशिश कर रहा हूँ, अतः आप मेरे यात्रा लेखों को सीधे मेरे ब्लॉग http://pareevrajak.blogspot.in/ पर भी विस्तृत रूप में पढ़ पाएंगे |
मणिपुरी दूल्हा |
असमिया दूल्हा |
इस लेख में आपने जो भूमिका लिखी है, उससे समझ आने लगा है कि आगामी लेख पढे बिना चैन नहीं मिलने वाला है।
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