Tuesday, March 14, 2017

पूर्वोत्तर यात्रा: मणिपुर में पहला दिन, पौना बाज़ार और हेजिंग्पोट की तैयारियां......

जब हम घर के अन्दर पहुंचे तो अन्दर कुछ युवा मिठाई के डिब्बे तैयार कर रहे थे, ये सारे लोग मेरे लिए नए थे इसलिए भास्कर दा ने सबके साथ मेरा परिचय करवाया | अबुंग कुछ लोगों को लेकर पौना बाज़ार जाने वाला था, मैंने भी जाने का आग्रह किया तो किसी को कोई आपत्ति न हुई, लेकिन अबुंग किसी का इंतजार करने को बोल रहा था और तब तक खाना खाके निपट जाने कि तैयारी में था, मुझे भी भूख लगी थी क्योंकि सुबह से कुछ खाया नही था, लेकिन जैसे ही हम खाना खाने के लिए आगे बढे अबुंग ने कहा तामो (मणिपुरी में बड़े भाई को तामो कहा जाता है) आ गया, तो हम खाना छोड़कर बाज़ार के लिए निकल गए, हम पांच (मै, अबुंग, साना, काइकू और इंदु दीदी) लोग एक मारुती 800 कार में जाके बैठ गए, मै इम्फाल का बाज़ार, यहाँ शाम को लोगों कि दिनचर्या देखने के लिए उत्सुक था, लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद अबुंग ने एक पान कि दुकान के सामने गाड़ी रुकवाते हुए कहा कि जरा इसमें पेट्रोल भरवा देते हैं, आपको भले ही ये पढ के आश्चर्य हो होगा कि पान कि दुकान में क्या कोई पेट्रोल भरवाता है ? लेकिन मुझे थोडा सा भी आश्चर्य नही हुआ क्योंकि मुझे मणिपुर के हालात अच्छे से पता थे और उन दिनों मणिपुर किस स्थिति से गुजर रहा है ये में अच्छे से जानता था, पिछले तीन महीने से देश का मणिपुर राज्य एक उग्रवादी संगठन के द्वारा आर्थिक नाकेबंदी झेल रहा था, यहाँ के सारे पेट्रोल पंप सूखे कुंवे कि तरह हो गये थे और राज्य सरकारें अपनी सत्ता सुख में व्यस्त थी, ताज्जुब तो ये कि केंद्र सरकार भी केवल मीडिया के माध्यम से बयान बाज़ी में लगी थी, मार्च में मणिपुर  में चुनाव होने थे अतः केंद्र सरकार भी इसका राजनीतिक फायद उठाना चाह रही थी, क्योंकि राज्य में विपक्षी सरकार थी, खैर राजनीतिक फायदे के लिए सरकारें किसी भी हद तक जा सकती है, अबुंग जब तेल खरीदने के लिए गाड़ी से उतरा तो मेरा ध्यान दुकान में चिपके एक प्रिंट पर गया जिसमे लिखा था “इलेक्ट्री रिचार्ज यहाँ उपलब्ध” है, मुझे लगा कि शायद यहाँ लाइट कि समस्या रहती होगी तो ये लोग बैट्री से फ़ोन वगैरह  चार्ज करते होंगे लेकिन ये बात मेरे गले नही उतर रही थी तो मैंने साना को पूछ लिया, जब उसको समझ नही आया कि मै क्या जानना चाहता हूँ तो मैंने उसे दुकान कि तरफ इशारा करके पूछा कि वो जो लिखा है इसका मलतब क्या ? तब उसने मुझे धीमे स्वर और धीरे-धीरे हिंदी में बताया कि यहाँ अब घरों में बिजली आपूर्ति पूर्व भुगतान यानि प्री पेड़ के आधार पर कि जाती, आपके खाते में जितने पैंसे होंगे आप उतनी ही बिजली प्रयोग कर सकते हो, मेरे लिए तो ये एकदम नयी और आश्चर्य कि बात थी क्योंकि में जो देश कि राजधानी में रहता हूँ यहाँ अभी तक ऐंसा सिस्टम चालू करने का विचार ही चल रहा है और मणिपुर  में ये लागु भी हो गया है, मैंने साना और अन्य साथियों को मणिपुर में बिजली कि उपलब्धता के बारे में पूछा तो वो बोले जब से सरकार ने प्री पेड सिस्टम किया यहाँ बिजली चोरी काफी हद तक समाप्त हो गई है और बिजली चोरों के ऊपर सख्त कार्रवाई कि जाती है, जिससे यहाँ अब बिजली कि समस्या पहले जैसी नही रही, बाद में इस बात कि पुष्टि एक विद्युत विभाग के एक अधिकारी ने भी कि थी, जिसमे उन्होंने कहा था कि जब से मणिपुर में नयी पीढ़ी सरकारी जॉब में आयी है यहाँ काफी परिवर्तन आया है क्योंकि ये पीढ़ी बाहर से अच्छी शिक्षा लेकर अपने राज्य में कुछ अच्छा काम करने कि कोशिश में लगे हैं, हांलांकि जब आम जानता किसी बात कि पुष्टि कर देती है तो फिर किसी अधिकारी कि जरूरत नही पडती है |

गाड़ी में तेल डलवाने के बाद अबुंग गाड़ी में बैठ गया और हम चले पड़े थे अपनी मंजिल कि ओर...कुछ ही देर में हम उस बाज़ार में पहुँच गए थे जहाँ से हमे मिठाई लेनी थी, गाड़ी से उतरने के बाद हम सीधे उस दुकान कि ओर बढे जहाँ से हमे मिठाई लेनी थी लेकिन दुकान वाले ने हमे निराश कर दिया और कहा कि आपका आर्डर अभी तैयार नही है एक घंटा लगेगा ये सुनकर सच मानिए मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योंकि हम खाना छोड़कर यहाँ आये थे, और ये महाशय हमे और इंतज़ार करवाने वाले थे, अबुंग समझ गया था कि मुझे बहुत जोरो कि भूख लगी है, उसने मुझे कहा भी कुछ खा लो, लेकिन मुझे अकेला कुछ खाना अच्छा नही लगा सो मना कर दिया और फिर घर से निकलते समय मै भास्कर दा को बोल के आया था कि घर लौटकर साथ में खाना खायेंगे, समय काटने के लिए हम थोडा सा बाज़ार में घुमे और वापस उस दुकान में अड्डा जमाकर कर बैठ गए, हांलांकि कि दुकान में अकेला मैं ही हिंदी भाषी नही था वहां बहुत से दिहाड़ी वाले हिंदी भाषी मजदूर थे और दुकानदार खुद भी हिंदी भाषी था, लेकिन मेरा परिचय इन चार मणिपुरियों से था जिनकी मणिपुरी गप्पों के बीच में मै अपने एक हाथ में मोबाइल पर गूगल मेप व दूसरे हाथ से चाय के गिलास कि चुस्कियों में व्यस्त था, काईको और अबुंग को लगा कि शायद मै उनकी मणिपुरी में चल रही बातों से उब रहा हूँ तो वो दोनों बीच-बीच में मुझे हिंदी में समझा देते थे कि वो क्या बात कर रहे हैं या फिर वो हिंदी में बात करने कि कोशिश करते लेकिन मैंने उन्हें कहा कि नही आप लोग मणिपुरी में ही बात कीजिये, मै आपकी बातों को ध्यान से सुन रहा हूँ ताकि मुझे मणिपुरी के कुछ शब्द समझ में आ सके | चाय पीते हुए मैंने अबुंग से पूछ लिया कि हम जिस बाज़ार में बैठे हैं उसे क्या कहते हैं ? वैसे मैं बाज़ार का नाम अपनी गूगल कि करेंट लोकेशन से जान गया था लेकिन सही नाम व उसके उच्चारण के लिए मैंने अबुंग से पूछ लेना उचित समझा | जिस बाज़ार को हमने 10 मिनट में घूम लिया था उसका नाम था पौना बाज़ार और जिस शख्स के नाम से आज ये बाज़ार जाना जाता है उसकी शख्सियत व उनके नाम कि कहानी बड़ी ही रोचक है |

पौना बाज़ार को ये नाम मिला था स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पौना ब्रजबासी के कारण जो 1891 में अंग्रेजों के साथ खोंगजोम के युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गए थे | वे इतने पराक्रमी व युद्ध कुशल ही तो थे कि 58 वर्ष की आयु में मणिपुरी सेना से सेवानिवृत होने के बावजूद भी उनको 1890 में मेजर के पद पर पुनः नियुक्त किया गया था | वो मणिपुरी मार्शल आर्ट (जिसे आज थांग-टा के नाम से भी जाना जाता है) के माहिर थे, तलवार बाज़ी में उनका कोई मुकाबला नही कर सकता था, मणिपुरी सेना में केवल उन्हें ही पंजाब जाकर कुछ अन्य युद्ध कौशल सीखने के लिए भी चुना गया था | 1891 में जब मणिपुर पर अंग्रेजों ने अपना कब्ज़ा ज़माने के लिए म्यांमार कि दिशा से इम्फाल कि ओर बढ़ना शुरू किया तो उनको रोकने के लिए पौना ब्रजबासी के नेतृत्व में मणिपुरी सेना को खोंगजोम भेजा गया जोकि इम्फाल से 36 किमी कि दूरी पर भारत-म्यांमार के रास्ते में है | 23 अप्रैल 1891 को अंग्रेजों के साथ युद्ध शुरू हुआ, तीन दिन तक चले इस युद्ध में पौना ब्रजबासी अपनी सेना के साथ शहीद हो गये | उन शहीदों की याद में प्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को खोंगजोम दिवस  मनाया जाता है, इसमें गानों के माध्यम से पौना ब्रजबासी के गौरवशाली इतिहास को प्रस्तुत किया जाता है जिसे खोंगजोम पर्व कहा जाता है |

लेकिन अगर में कहूँ कि जिस शख्स के नाम से लोग आज इस बाज़ार को जानते हैं उनका असली नाम पौना ब्रजबासी नही था तो आप क्या कहेंगे, यही कि फिर उनका असली नाम क्या था ? पोनम नवोल सिंह ! जी हाँ यही था उनका असली नाम, लेकिन वो पौना ब्रजबासी कैंसे हो गये ? दरअसल इसके पीछे भी एक छोटी सी कहानी है, असल में पोनम नवोल सिंह कुछ वर्षों तक वृन्दावन में रहे थे जिस कारण उनके नाम के साथ ब्रजबाशी (बृजवाशी) जुड़ गया था और पोनम को लोग पौना उच्चारित करने लगे, जिस कारण धीरे-धीरे ये पौना ब्रजबासी के नाम से प्रचिलित हो गये, और भारत में तो ये प्रथा है ही कि लोग एक दूसरे को उसके असली नाम से कम अन्य उप नामों से अधिक जानते हैं |

लेकिन मेरे सामने अब सवाल ये है कि जब तक इस बाज़ार का नाम पौना बाज़ार नही पड़ा था तब तक लोग इसे किस नाम से जानते थे ? और कब से इसे इस नाम से जाना जाने लगा ? सवाल कुछ और भी हैं जिनकी चर्चा किसी और भाग में करूँगा, यहाँ मै अपनी पूर्वोत्तर यात्रा पर वापस लौटता हूँ ................

आपको मै ये बताना तो भूल ही गया था कि हम पांच लोग पौना बाज़ार क्यों आये थे, असल में हम अगले दिन होने वाली विवाह कि एक महत्वपूर्ण रस्म हेजिंग्पोट में लड़की के घर ले जाने के लिए मिठाईयां खरीदने के लिए पौना बाज़ार आये थे | मुझे मणिपुर में बड़े-बूढों कि खाना खाने को लेकर कही गयी एक बात जीवनभर के लिये सबक लग रही थी और वो ये बात थी कि कभी भी थाली में रखे खाने को छोड़कर किसी काम के लिए घर से नही निकलना चाहिए वर्ना भूखे रह जाओगे, मेरे साथ उस दिन कुछ ऐंसा ही हुआ, मै खाना आकर खाने कि बात कहकर बाज़ार के लिए निकल गया था और बाज़ार से मिठाई लाने के बाद घर में सब लोग अगले दिन होने वाली विवाह कि रस्म कि तैयारियों में जुट गए थे और कोई भी खाने के लिए पूछ ही नही रहा था, मुझे लगा कि शायद विवाह कि उत्सुकता के कारण इन लोगों को भूख ही नही लग रही थी या ये लोग खाना खा चुके थे, खैर वजह जो भी रही हो पर मै तो भूखा ही था और इस इंतज़ार में था कि कब मुझे खाने के लिए आमंत्रित किया जायेगा, इधर भास्कर दा ने भी मुझे खाने के मामले में धोखा दे दिया था, क्योंकि वो शाम को कहीं बाज़ार से दबाके पकोड़ा खा चुके थे जिस कारण वो खाने के इछुक नही थे, बड़ी देर बाद आखिर हमे भोजन कक्ष में आमंत्रित किया गया | भोजन करने के पश्चात् हम कुछ लोग फिर से अगले दिन कि तैयारियों में जुट गए थे, उस तैयारी के दौरान मुझे एक बात समझ आयी कि मणिपुरी लोग लड़की के घर ले जाने वाले सामान को बड़े सलीके से ले जाते हैं, पहले मिठाइयों को छोटे डिब्बों में रखा गया फिर उनको बड़े डिब्बो में रख कर अच्छे से सजाकर पैक किया जा रहा था | काम कम होने के साथ-साथ लोग भी कम होते जा रहे थे, जिनका घर दूर था वो लोग घर के लिए निकल गए थे | काईको को घर बगल में ही था तो जब तक काम पूरा नही निपट गया वो तब तक वहां रुकी, लगभग रात के 12 बजे तक सारी पैकिंग हो चुकी थी और वो भी जाने कि तैयारी में थी लेकिन मैं तो पहले ही कामचोरी करके अपने सोने के लिए बिस्तर पर कब्ज़ा जमा चूका था | इस तरह मेरा मणिपुर का पहला दिन बिता |

पूर्वोत्तर यात्रा के अगले भाग में मै आपको अब मणिपुरी विवाह कि परम्पराओं रस्मों से रूबरू करवाऊंगा, तब तक आप मेरी पूर्व में लिख गयी पूर्वोत्तर यात्रा कि भूमिका, पूर्वोत्तर यात्रा: चल पड़ा पूर्वोत्तर कि ओर व एअरपोर्ट से इरिलबुंग तक का सफ़र और मणिपुरी युद्ध कला ‘हुएन लाल्लोंग’ से परिचय को विस्तार से पढ़ सकते हैं | तो मिलता हूँ जल्दी ही आपको अपने पूर्वोत्तर यात्रा के भाग भाग के साथ.......|

इम्फाल में 5 दिन का हमारा आशियाना 














यात्राओं के दौरान मेरे द्वारा लिए गए चित्रों को आप मेरी फेसबुक प्रोफाइल परिव्राजक नीरज या फिर आप मेरे फेसबुक पेज परिव्राजक फोटोग्राफी पर भी देख सकते हैं |
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9 comments:

  1. यात्रा विवरण बहुत ही बढ़िया

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    1. धन्यवाद समय निकाल कर पढने के लिए, इससे पुर के विवरण भी आप पढ़ सकते हो

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  2. भाईसाहब 👌👌👌👌👌 विवरण 😊😊😊😊

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  3. बहोत बढ़िया तामो

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  4. Bahut sundar ��������

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  5. इलेक्ट्री रिचार्ज यहाँ उपलब्ध” है, मुझे लगा कि शायद यहाँ लाइट कि समस्या रहती होगी तो ये लोग बैट्री से फ़ोन वगैरह चार्ज करते होंगे लेकिन ये बात मेरे गले नही उतर रही थी तो मैंने साना को पूछ लिया, जब उसको समझ नही आया कि मै क्या जानना चाहता हूँ तो मैंने उसे दुकान कि तरफ इशारा करके पूछा कि वो जो लिखा है इसका मलतब क्या ? तब उसने मुझे धीमे स्वर और धीरे-धीरे हिंदी में बताया कि यहाँ अब घरों में बिजली आपूर्ति पूर्व भुगतान यानि प्री पेड़ के आधार पर कि जाती, आपके खाते में जितने पैंसे होंगे आप उतनी ही बिजली प्रयोग कर सकते हो, मेरे लिए तो ये एकदम नयी और आश्चर्य कि बात थी क्योंकि में जो देश कि राजधानी में रहता हूँ यहाँ अभी तक ऐंसा सिस्टम चालू करने का विचार ही चल रहा है और मणिपुर में ये लागु भी हो गया है,

    दिल्ली में भी यह प्रीपैड बिजली सिस्टम. लेकिन यह अभी तक सरकारी कार्यालयों तक ही सीमित है, हमारे यहाँ MCD के अधीन आने वाले स्वास्थ्य केन्द्रों पर कई साल से यह व्यवस्था चल रही है।

    पौना बाजार, पोनम को पौना बना दिया, देश में बहुत से नाम से जो मूल से ह्टकर बदलते गये।

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  6. राइटिंग स्टाइल काफी अच्छा है। नाम बदल देना तो हमारी परम्परा का हिस्सा बन गया है ।

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