Saturday, March 4, 2017

पूर्वोत्तर यात्रा: चल पड़ा पूर्वोत्तर कि ओर.........

आखिरकार 5 फरवरी 2017 को वो घडी आ ही गयी जिसका मुझे कई वर्षों से इंतज़ार था, ऐसा नही कि इस यात्रा को स्थगित करने के मेरे पास कोई वजहें न आयी हों लेकिन इस बार मैंने जैंसे भी हो  मणिपुर जाने की ठानी थी | मणिपुर जाने को मन इतना बेताब था कि सुबह जल्दी ही आंख खुल गयी और सारी तैयारियां पूर्ण करने कि बाद भी समय था कि कट नही रहा था, कैब बुक करके समय से पहले ही एअरपोर्ट के लिए निकल पड़ा सोचा वहीँ इंतज़ार कर लूँगा क्योंकि घर में अब बैठे रहना मुश्किल होता जा रहा था | मेरे लिए इंतज़ार करना कितना मुश्किल था ये आपको बयां नही कर सकता केवल इतना कह सकता हूँ कि फ्लाइट 20 मिनट कि देरी से उड़ने वाली थी और मुझे ये 20 मिनट 2 घंटे के बराबर लग रहे थे | दिल्ली से में अकेले ही इम्फाल जाने वाला था भास्कर दा मुझे गुवाहाटी से उसी फ्लाइट में मिलने वाले थे, भास्कर दा का मणिपुर जाना बहुत  बार हुआ है, और पूर्वोत्तर की जानकारी के मामले में उनका कोई सानी नही है अतः मेरी मणिपुर यात्रा के मार्गदर्शक वही थे |

इधर पूर्वोत्तर से दूर उत्तर भारत में जिन लोगों को मेरी पूर्वोत्तर यात्रा कि जानकारी मिली; उन्होंने मुझे अपने अनुभवों, विवेक और ज्ञान के आधार पर कुछ सुझाव दिये, चूँकि में मणिपुर पहली बार जा रहा था तो उसके सन्दर्भ में मेरी भी कुछ जिज्ञासाएं व शंकाएं थी और सुझाव भी वहीँ के ज्यादा थे तो मैंने इन्हें गांठ बांध ली थी | पूर्वोत्तर से दूर जो लोग कभी पूर्वोत्तर आये नही हैं उनके लिए पूर्वोत्तर किसी रहस्यमयी जगह से कम नही है, जहाँ राष्ट्रीय मीडिया ने यहाँ के उग्रवाद, अतिवाद को अपने-अपने माध्यमो में जगह दी और जिस प्रकार यहाँ सरकारी नौकरी के दौरान आयी पोस्टिंग में सरकारी नौकरों ने यहाँ के जादू-टोनो को अपनी गप्पों में जगह दी उससे यहाँ लोग आज भी आने से कतराते हैं | ऐसे गपबाजों से सुनी सुनाई बातों के आधार पर मुझे भी कहा गया था कि एक बार जो पूर्वोत्तर जाता है वहां से वापस नही आता, या फिर जब लोगों को पता चलता था कि मैं पूर्वोत्तर में रहता हूँ तो मुझसे लोग पूछते थे कि हमने सुना है जो वहां एक बार जाता है वो वहाँ से लौटकर नही आता है, क्या ये सच है ? और सच कहूँ तो अब मुझे भी इन बात पर यकीन हो गया है कि जो लोग पहले-पहल पूर्वोत्तर आयेंगे होंगे वो शायद ही वापस लौटे होंगे और अगर वापस गए भी होंगे तो केवल उनका शरीर गया होगा मन-मष्तिस्क पूर्वोत्तर में ही रह गया होगा, यहाँ आने के बाद किसी मुर्ख और रूखे व्यक्ति का ही मन वापस जाने को होता होगा | मै जब भी पूर्वोत्तर आता हूँ मेरा इसके प्रति आकर्षण बढ़ता ही जाता है, यहाँ कि हरयाली, मिट्टी कि खुशबु, रंग-बिरंगी पौशाकें, यहाँ के लोग, भाषा-बोली, संस्कृति, यहाँ कि खूबसूरती, अनायास ही मुझे अपनी और खिंचता रहता है | पूर्व में ऐसे ही थोड़े इस क्षेत्र को कामरूप कहा जाता था है, माँ कामख्या का इस क्षेत्र में विशेष प्रभाव जो है, माँ सती के 51 शक्ति पीठों में से एक सबसे महत्वपूर्ण पीठ पूर्वोत्तर का द्वार कहे जाने वाले असम के गुवाहटी में ही स्थित है जहाँ हर वर्ष कौमार्य कि पूजा होती है |

खैर मेरे शुभचिंतकों में दो प्रकार के लोग थे, मेरे ऐसे शुभचिंतकों ने मुझे होशियार रहने कि सलाह दी जो कभी पूर्वोत्तर आये नही हैं लेकिन राष्ट्रीय मीडिया के माध्यम से पूर्वोत्तर कि थोडा बहुत जानकारी रखते हैं और दुर्भाग्य कि बात यह है कि आज भी राष्ट्रीय मीडिया ने पूर्वोत्तर के प्रति अपना नजरिया नही बदला है, यहाँ कितना कुछ अच्छा हो रहा होगा उसको कभी अपने मीडिया में नही दिखायेंगे लेकिन एक छोटी सी अपराधिक घटना को सारे राष्ट्रीय मीडिया वाले ब्रेकिंग न्यूज़ कि तरह दिखाना शुरू कर देते हैं, एक उदहारण देना चाहता हूँ असम में कई वर्षों से जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल से भी कई गुना बड़ा साहित्य सभा का आयोजन किया जाता है लेकिन कभी भी राष्ट्रीय मीडिया में उसका जिक्र नही हुआ होगा, ये तो केवल एक उदहारण है ऐसे कई और उदारहण यहाँ है जिनको देश का राष्ट्रीय मीडिया नज़रंदाज़ करता रहा है | मेरे लिए ताज्जुब कि बात ये थी कि मेरी मणिपुर जाने कि योजना सुनकर मेरे एक बड़े भाई जैंसे मित्र श्री आशीष भावे जी जो कई वर्षों से पूर्वोत्तर से भलीभांति परिचित हैं और हर मास 2–3 बार पूर्वोत्तर जाते हैं ने मुझे सीधे ही पूछ डाला ऐसे समय में ही तुमने वहां जाने कि ठानी जब मणिपुर संकट कि घडी से गुजर रहा है, वहां लोगों के पास खाने को कुछ नही है, लोग भूखे हैं वहां, तुमको कैसे क्या खिलाएंगे वो लोग ? मैंने भी कह डाला ऐसे समय में ही तो मज़ा है वहां जाने का, वैसे वहां मैं एक विवाह समारोह में जा रहा हूँ तो कोई दिक्कत नही होगी, वो बोले हे राम कैंसे व्यवस्था कर रहे होंगे वो लोग ? दरअसल भावे जी कि चिंता का कारण 1 नवम्बर 2016 को Naga National Council द्वारा मणिपुर के ऊपर थोपी गयी आर्थिक नाकेंबंदी  थी जिस वजह से वहां खाने-पीने, ईंधन, रसोई गैस, दवाइयों व अन्य दैनिक आवश्यक सामान कि कमी हो गई थी,  जिस कारण जो वस्तुयें उपलब्ध थी भी उनकी कीमतें आसमान छूने लगी थी | वैसे मणिपुर के लिए ये कोई नयी बात नही थी, लेकिन इससे उनका दैनिक जीवन काफी असुविधा में था |

जहाज के अन्दर कि ख़ामोशी को तोड़ते हुए फ्लाइट कैप्टिन ने कहा कि जो यात्री जहाज़ के बायीं और बैठे हैं वो खिड़की से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों को देख सकते हैं, किस्मत से में जहाज के बायीं और ही बैठा था लेकिन खिड़की से दूर तीसरी सीट पर, वैसे मुझे बर्फ से ढकी हिमालय कि चोटियाँ दिखाई दे रही थी लेकिन खिड़की वाली सीट पर न बैठ पाने का मुझे मलाल जरूर हो रहा था | काफी देर तक पहाड़ों को तकने के बाद मै एक बार फिर अपने विचारों में डूब गया, फ्लाइट कैप्टिन की घोषणा ने एक बार फिर सबको बायीं और झाँकने को उत्साहित किया लेकिन बादलों ने सबकी उत्सुकता को ढेर कर दिया और हम विश्व कि सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला माउन्ट एवेरेस्ट को नही देख पाए, जिसका मुझे खिड़की वाली सीट से भी ज्यादा मलाल था | अपनी तीसरी घोषणा में फ्लाइट कैप्टिन ने दिल्ली से 20 मिनट कि देरी से उड़ने के बावजूद समय से गुवाहाटी पहुचने कि बात कही |

जैंसे-जैंसे हमारा विमान लैंडिंग के लिए गुवाहाटी हवाई अड्डे के करीब पहुँच रहा था गुवाहटी के लैंडस्केप और प्राकृतिक छठायें मुझे अपने आप में डुबोती जा रही थी, मेरे इर्द-गिर्द पूर्वोत्तर में मेरी पुरानी यात्रायें घुमने लगी थी, भास्कर दा कि कॉल ने मुझे मेरी इन यात्राओं के जाल से बाहर निकाला, हम गुवाहाटी हवाई अड्डे पर पहुँच चुके थे और दिल्ली से गुवाहटी तक के यात्री विमान से उतरने लगे थे और गुवाहाटी से मणिपुर जाने वाले यात्री अन्दर आने कि प्रतीक्षा में बाहर खड़े थे,  भास्कर दा ने मुझे मेरी सीट नंबर पूछने के लिए फ़ोन किया था, क्योंकि यहाँ से आगे हम दोनों एक ही विमान से मणिपुर जाने वाले थे |

गुवाहटी से 55 मिनट और दिल्ली से लगभग 5 घंटे 15 मिनट कि हवाई यात्रा के बाद विमान अब मणिपुर कि राजधानी इम्फाल के इम्फाल अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने कि तैयारी में था और मैं खिड़की से एकटक इम्फाल के लैंडस्केप को अपने अन्दर उतार रहा था, शायद खिड़की कि ओर मेरी इस एकटक निगाहों से खिड़की कि ओर बैठे यात्रियों को असहज थे लेकिन उनके पास मुझे झेलने के अलावा और कोई चारा भी तो न था | केबिन क्रू स्टाफ ने अपने दैनिक लहजे में हमारा इम्फाल के हवाई अड्डे पर स्वागत किया और आगे कि यात्रा के लिए शुभकामनायें दी, सारे यात्री जल्दी से जल्दी विमान से बाहर निकलने कि कोशिश में लगे थे, अन्दर का नज़ारा उस समय ऐसा था जैंसे किसी बाड़े में बंधी भेड़े बाड़ा खुलने के साथ करती हैं | भास्कर दा कि सीट मेरे से आगे थी इसलिए वो नीचे उतर कर मेरा उतरने का इंतज़ार कर रहे थे, मैं भी जल्द से जल्द मणिपुर कि धरती पर अपना पैर रखना चाहता था | भास्कर दा से मेरी मुलाकत बनारस के बाद सीधे इम्फाल में ही हो रही थी, मेरे नीचे उतरते ही उन्होंने मुझे पूछा कि तुम्हारा वापसी का टिकट कब का है ? मैंने कहा 9 का तो फिर उन्होंने कहा फिर तो ठीक है क्योंकि शादी 7 को नही 8 फरवरी को है |

विमान से उतरने के बाद हम दोनों अपना सामान लगेज काउंटर कि और बढ़ गए, जितनी देरी से विमान दिल्ली से उड़ा था मुझे लगा कि मेरे सामान ने मुझे उससे भी ज्यादा इंतज़ार करवाया होगा, भास्कर दा मेरे से सवा दो घंटे बाद गुवाहाटी से विमान में सवार हुए थे लेकिन उनका सामान मेरे से पहले आ गया तो मुझे खुद के साथ बड़ी न्याय इंसाफी महसूस हो रही थी, साथ ही साथ सोच रहा था कि कहीं विमान कंपनी के कर्मचारी ये न बोल दे कि आपका सामान तो दिल्ली हवाई अड्डे पर ही रह गया है, खैर ऐसा हुआ नही बड़े इंतज़ार के बाद मेरा बैग मेरी तरफ आता दिख रहा था, भास्कर दा अपना सामान लेकर बाहर निकल कर मेरा इंतज़ार कर रहे थे, क्योंकि बाहर कोई उनका वेट कर रहा था जिसको उन्होंने कुछ खाने-पीने का सामान देना था, वो असम के हल्फ्लोंग से योम्चा (एक प्रकार कि सब्जी) लेकर आये थे | जिस बैग में वो खाने-पीने का सामान था उस बैग ने भी हमे खूब इंतज़ार करवाया था, इस इंतजारी कि घड़ी में भास्कर दा बोल पड़े थे “अरे कहीं खाने-पीने का सामान देखकर यहाँ के लोगों ने बैग को अपने पास ही तो नही रख लिया ? यहाँ आजकल खाने-पीने का सामान लाना मुश्किल है लोग उस पर टूट पड़ते हैं” ये सुनकर मुझे आशीष भावे जी कि बात याद आ गयी और मन में संशय बढ़ गया, लेकिन मै भी दृढ संकल्प के साथ दिल्ली से निकला था इसलिए सोचा अब जो होगा देखा जायेगा |

अपना सामान लेकर जब में एअरपोर्ट से बाहर निकला तो मैंने एअरपोर्ट कि और मुड़कर देखा, उसकी सुन्दर बनावट व खूबसूरती ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया, मणिपुर कि राजधानी इम्फाल में 2545 फीट की  ऊंचाई पर स्थित यह छोटा सा हवाई अड्डा कई मायनो में खास है, लोग इसे इम्फाल इंटरनेशनल एअरपोर्ट, तुहिलाल इंटरनेशनल एअरपोर्ट और बीर टिकेन्द्रजित इंटरनेशनल एअरपोर्ट के नाम से भी जानते हैं | यहाँ यात्रियों के लिए सारी आधुनिक सुविधायें मौजूद है और यहाँ से रात में भी विमान को उड़ाने व उतारने कि सुविधा है | गुवाहटी के बाद पूर्वोत्तर का यह सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है | यह भारतीय सेना का मिलिट्री बेस भी है और द्वितीय विश्व में भी इस हवाई अड्डे का प्रयोग किया गया था, द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों को इसी हवाई अड्डे से सेना कि आपूर्ति कि गयी थी |




शेष आगे अंक में .....

यात्राओं के दौरान मेरे द्वारा लिए गए चित्रों को आप मेरी फेसबुक प्रोफाइल परिव्राजक नीरज या फिर आप मेरे फेसबुक पेज परिव्राजक फोटोग्राफी पर भी देख सकते हैं |

7 comments:

  1. हो सकता है कि क्योंकि मैं इस यात्रा में शामिल हु, इसीलिए मैरी एहसास कुछ अलग सा हो ...... या फिर इस धरती के प्रति जो मेरा लगाव है - इस कारण से मेरा दिल ज्यादा धड़का हो ......

    फिर भी मुझे लगता है कि तुमने अपने अंदर बहुत लंबे समय तक एक बहुत अच्छे लेखक को छुपा कर रखा .... जो शायद काफी बिलंब से बाहर आया है !

    घुमक्कड़ तो तुम हो ही पर लेखक होना इतना आसान नहीं ... और इतना अच्छा???

    एक नीरज को समस्याओ से घिरे होने के बावजूद भी अपने मेहनत, धर्य और लगन के बूते एक नई, अच्छी और सुंदर career को बनाते हुए मैंने देखा है , तुम भी अपनी दुनिया में तुम्हारी मनचाहा मुकाम हासिल करके .... मुझे खुश होने का मौका जरूर देना ।

    Next episode का इंतज़ार रहेगा .....👌👍

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  2. बहुत सुंदर वर्णन! मानो मैं स्वंय ही इस यात्रा का एक भाग रहा हो ऐसा लगा....

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  3. शानदार यात्रा वृतांत सरजी

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  4. पूर्वोत्तर को देखने समझने के लिये आपकी यह यात्रा बहुत काम आने वाली है
    \

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  5. बहुत बढ़िया ...आपकी पोस्टो के जरिये पूर्वोतर को समझने में सहयता मिलेगी

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