Tuesday, March 21, 2017

पूर्वोत्तर यात्रा : मणिपुर में दूसरा दिन व हेइजिंगपोट (Heijingpot) की रस्म

रात को सोने से पहले भास्कर दा ने मुझे बता दिया था कि अगले दिन सुबह 10 बजे के करीब हम लोगो को दुल्हे कि तरफ से दुल्हन के घर हेइजिंगपोट की रस्म (औपचारिक सगाई) में जाना है, इसलिए में सुबह आराम से 8 बजे तक उठा | आज का हमारा पहला एजेंडा था नहाकर तैयार होना, उन दिनों मणिपुर में ठण्ड बहुत ज्यादा तो नही थी लेकिन ठन्डे पानी से नहाया जा सके ऐसा भी नही था और भास्कर दा पहले ही मेरी गरम पानी कि उम्मीदों पर पानी फेर चुके थे, इसलिए मैंने उसके लिए कोई कोशिश भी नही कि और ठन्डे पानी से ही नहा लिया, जिसके बाद हमको जाना था नास्ता करने और हमको नास्ता करवाने जिम्मेदारी दी गयी इबोमचा जी को जोकि हमसे उम्र में काफी बड़े थे लेकिन उनको देख कर कोई भी उनकी उम्र का अंदाज़ा नही लगा सकता था और हम उनको भैया कह कर पुकार रहे थे | उनसे पहले दिन ही मेरी 2 मिनट कि मुलाकात हुई हो चुकी थी इसलिए वो मेरे लिए एकदम नए नही थे, हम उनके साथ पास के बाज़ार में नास्ता करने गए, मुझे लगा कि हमारे लिए नाश्ते कि व्यवस्था बाहर इसलिए कि गयी थी कि शायद इन लोगों ने सोचा होगा कि हम रोटी खाने वाले लोग सुबह चावल वाला मणिपुरी नास्ता पसंद ना करें, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नही था, असल में उन्होंने ऐसा इसलिए किया था कि आज घर के सभी लोग हेइजिंगपोट कि तैयारी में व्यस्त थे और घर में फ़िलहाल खाने को कुछ नही बनने वाला था |

मुझे थोडा आश्चर्य भी हुआ कि आज विवाह कि पहली रस्म है और घर में कोई मेहमान भी नज़र नही आ रहे थे और ना ही खाने-पीने कि कोई व्यवस्था ही, फिर सोचा कि शायद हम कुछ लोग ही आज इस रस्म के लिए जायेंगे और बाकि लोग शायद शादी में जायें | हम जब नास्ता करके वापस घर आ रहे थे तो रास्ते में कुछ पारम्परिक वेश-भूषा में महिलाओं टोली नज़र आयी तो भास्कर दा बोल पड़े शायद ये सब हेइजिंगपोट के लिए तैयार होकर घर कि तरफ ही आ रहे हैं और भास्कर दा का अंदाज़ा सही था, वो सारी महिलाएं उसी घर में आ रही थी, धीरे-धीरे संख्या बढ़ने लगी थी और अब मुझे समझ आ गया था कि सगाई में हम कुछ लोग नही बल्कि लगभग 50 -60 लोग जाने वाले हैं |

हेइजिंगपोट (Heijingpot) रस्म कि तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी थी और अब समय था लड़की के घर के लिए निकलने का, सारी महिलायें घर के सामने बने मंदिर के मंडप में जाकर एक लाइन से खड़ी हो गयी, एकदम ऐसे जैंसे हम स्कूल में प्रार्थना के लिए लाइन बना के खड़े होते थे अनुशासन के साथ, पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार सबसे आगे एक छोटी लड़की को खड़ा किया गया जिसके सिर पर पुजारी द्वारा फूल व कुछ शगुन के सामान से भरी एक टोकरी रखी गयी, जिसे सफ़ेद कपड़े से पैक किया गया था, जिसे मणिपुरी में लेइचन्दोन (Leichondon) कहते हैं और उस छोटी लड़की को पुबी लेइसबी (Pubi leisabi) कहते है, 
Heijingpot: पुबी लेइसबी (Pubi leisabi)
और फिर उसके पीछे अन्य महिलाओं को अपने सिर पर फिन्गैरुक (Phingairuk) या हेइजिंग खाराई (Heijing Kharai) (बांस से बनी खुबसूरत टोकरियाँ) रख कर चलना था, इन टोकरियों में 7 प्रकार के फल - इन सात फलों में आंवला सबसे महत्वपूर्ण होता है जिसे मणिपुरी में हेइक्रू (Heikru) कहते हैं, इस रस्म में यदि हेइक्रू नही है तो बाकि फलों का कोई औचित्य नहीं होता है और यदि किसी कारण ये फल उपलब्ध नही है तो उसके पेड़ की शाखाएं प्रयोग कि जाती हैं, फलों के अलावा अन्य टोकरियों में मिठाई, चावल, दुल्हन के लिए कपड़े, श्रृंगार का सामान, गहने आदि होते हैं | एक टोकरी में पूर्वजों के देवताओं व एक में स्थानीय देवताओं के लिए फल रखे जाते हैं | ये सारा सामान महिलाएं अपने सर पर लेकर लड़की के घर जाती हैं, अगर घर सामने ही होगा तो पैदल नही तो घर से निकल कर गाड़ी तक सिर में सामान ले जाते हैं फिर लड़की के घर के सामने गाड़ी से उतर कर अपने सिर में रख कर पूजा के मंडप तक लेके जाती हैं |


ये सब देख कर ही मुझे अंदाज़ा लग गया था कि यहाँ की संस्कृति, वैवाहिक रीति-रिवाजों, उनकी रस्मों में महिलाओं का पुरुषों के समान ही योगदान होता है, आज हेइजिंगपोट में जाने के लिए   एक बस केवल महिलाओं से भरी थी, इसके अलावा कुछ और गाड़ियों में भी उनका ही वर्चस्व था, आज मेरा यह पहला अनुभव था जब किसी विवाह कि रस्म में जाने के लिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं कि संख्या दुगनी थी और संख्या को छोड़ दें तो भारत के अन्य राज्यों कि तरह ही यहाँ भी आकर्षण के केंद्र में महिलाएं ही थी, सारी महिलाएं अपनी आकर्षक पारंपरिक वेश-भूषा में थी | यहाँ एक और बात काफी रोचक थी कि वो ये कि सारी महिलाएं एक ही रंग-रूप कि फनेक (Fanek) - कमर से नीचे का वस्त्र और एन्नाफी (ennaphi) -ऊपर से ओढने वाला वस्त्र पहनी थी जोकि सूती या फिर रेशम से खुद के द्वारा घर में तैयार किया गया था और सारे पुरष सफ़ेद रंग का कुर्ता व धोती पहनते थे, इसलिए भास्कर दा ने मुझसे कहा कि वैसे तुम बाहर से आये हो तो आज बिना धोती कुर्ते के जा सकते हो लेकिन अगर तुम को फोटोग्राफी करनी है और मंडप के अन्दर जाना है तो तुम मेरा कुर्ता पजामा पहन लो, वर्ना लोग बुरा मान सकते हैं और भला मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी मैंने भी झट से उनके कुर्ते-पजामे पर हाथ लपक लिया, आखिर दिल्ली से मै उनके कुर्ते पजामे के सहारे ही यहाँ कि शादी में शामिल होने आया था क्योंकि मुझे यहाँ कि शादी में ड्रेस कोड वाली बात पहले से ही मालूम थी |   

घर से निकलने के 20 मिनट बाद ही हम लड़की के घर पहुँच गए थे, घर के आंगन में एक मंडप बना था और मंडप के बीचों-बीच एक गमले में तुलसी का पौधा (मणिपुर के मैतेयी समुदाय में तुलसी का बहुत बड़ा महत्व है, जिसका ब्लॉग में अलग से चर्चा करूँगा) रखा गया था, जिसके चारों ओर बाहरी किनारे पर बैठने कि व्यवस्था थी जहाँ वर पक्ष व कन्या पक्ष के पुरूषों को बैठा दिया गया और वर पक्ष कि महिलाओं के सिर से सामान उतार कर मंडप में रखे गए तुलसी के चारों ओर रख दिया गया |


वर पक्ष कि सभी महिलाओं को मंडप के बाहर पास में ही बने एक ऊँचे स्थान पर बिठा दिया गया, जिसके ठीक विपरीत कन्या पक्ष कि महिलाओं को बैठाया गया था | जब सब चीजें सही स्थान में पहुँच गयी तो स्थानीय पंडित ने पूजा शुरू कि जिसमे वो वर-वधु के कुल देवताओं, पित्रों आदि को निमंत्रित करते हैं और फिर वर-वधु के अभिभावक (यदि लड़के व लड़की के पिता जीवित नही हैं तो उनके घर से कोई सबसे बड़ा आदमी पिता कि जगह पूजा कि सारी रस्में पूर्ण करता है) को मंडप के बीच में पूजा के लिए बुलाया |

जिसमे दोनों ने अपने पूर्वजों, देवताओं को याद करते हुए, फल व चावल भेंट किया और साष्टांग प्रणाम किया, इसके बाद दोनों अभिभावक सबके सामने विवाह करवाने कि औपचारिक घोषणा कि, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सबके सामने अगले कुछ दिनों में होने वाली शादी को सामाजिक सहमति मिल सके, इसके बाद मंडप में बैठे सभी पुरुषों ने एक दूसरे को आदर भाव प्रदर्शित करते हुए झुक कर प्रणाम किया | फिर पंडित जी सब लोगों को फूल दिया, इसके बाद वधु पक्ष कि और से कुछ लड़कियां सबके लिए लाल चाय लेकर आयी, जिसे पीने के बाद हम सभी लोग वापस घर आ गये |


मेरे लिए विवाह कि इस पहली रस्म “हेइजिंग पोट-औपचारिक सगाई” में कुछ बातें बड़ी गौर करने वाली थी जिसमे सबसे पहली बात ये कि यह पूरी रस्म वर-वधु कि अनुपस्थिति में सम्पन्न होती है, दूसरा यहाँ के लोग अपनी पारंपरिक रस्मों के दौरान किसी भी तरह का शोरगुल पसंद नही करते, वहां मंडप में बैठा कोई भी व्यक्ति आपस में ना तो कोई बात कर रहा था ना ही वहां किसी भी प्रकार का संगीत बज रहा था, ना ही हमारे यहाँ कि तरह डी जे का शोरशराबा था, सब लोग एक दम शांत भाव से बैठकर मंडप कि तरफ नज़रें गढ़ायें बैठे थे, खैर आज कि रस्मों को देख कर मुझे लग गया था कि मुझे आगे कुछ और नए अनुभव प्राप्त होने वाले हैं तो उनके मै भी तैयार हो चूका था, जिनकी चर्चा मै अपने पूर्वोत्तर यात्रा के अगले भाग में करूँगा .......... तब तक आप मेरी पूर्वोत्तर यात्रा को शुरुआत से 4 भागों में पढ़ सकते हैं 1- पूर्वोत्तर यात्रा कि भूमिका, 2- पूर्वोत्तर यात्रा: चल पड़ा पूर्वोत्तर कि ओर 3- एअरपोर्ट से इरिलबुंग तक का सफ़र और मणिपुरी युद्ध कला हुएन लाल्लोंगसे परिचय 4- पूर्वोत्तर यात्रा: मणिपुर में पहला दिन, पौना बाज़ार और हेजिंग्पोट की तैयारियां...... को विस्तार से पढ़ सकते हैं |  और यदि आप मेरी मणिपुर यात्रा के दौरान लिए गए अन्य चित्रों को देखना चाहते हैं तो यहाँ Jewel of India (The Land of Jewels) क्लिक करें |

11 comments:

  1. बहुत सुंदर पोस्ट है।

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  2. Just now read your article on Manipur heijingpot. Almost similar to Assamese ritual. Nice to know about it. Sentences are simlpe and sweet imaginative...Carry on.

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  3. बहुत सुंदर, पढ़ते पढ़ते लगा में वही हूँ

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  4. बहुत बढ़िया, लिखते रहिये......

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  5. बहुत अच्छी लेखनी शानदार 👍

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  6. पहलीबार पूर्वांचल पे यात्रा वृतांत पड़ने को मिला मज़ा आ गया,
    बोहत ही रोचक जानकारी

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  7. मणिपुरी शादी के रीति रिवाज को नजदीक से जानने समझने का मौका मिला, कभी मणिपुर जाऊँगा तो आपका यह लेख बहुत सहायक रहेगा।

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